प्रस्तावना
वर्ष 1910 में संयुक्त प्रांत में मादक मदिरा एवं मादक औषधियों के आयात-निर्यात, परिवहन, निर्माण, विक्रय एवं कब्जे के संबंध में संयुक्त प्रांत आबकारी अधिनियम-1910 लागू किया गया। इस अधिनियम को 18 सितम्बर 1909 को लेफ्टिनेंट गवर्नर द्वारा तथा 24 फरवरी 1910 को गवर्नर जनरल द्वारा अनुमोदित किया गया तथा इसे भारतीय परिषद अधिनियम 1960 की धारा 40 के अन्तर्गत 12 जून 1910 को प्रकाशित किया गया।
उक्त अधिनियम के प्रावधानों तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 में प्रतिपादित सिद्धांतों के अनुरूप आबकारी विभाग की मूल नीति मादक पदार्थों के अनियोजित उपयोग के निषेध को बढ़ावा देना, लागू करना तथा प्रभावी बनाना है। निषेध के इस पहलू को प्राथमिकता देते हुए आबकारी विभाग यह सुनिश्चित करता है कि समुचित पर्यवेक्षण एवं नियंत्रण के माध्यम से मादक पदार्थों की वैध बिक्री से अधिकतम राजस्व प्राप्त किया जाए। राजस्व अर्जित करने के साथ-साथ विभाग गुड़ एवं अल्कोहल पर आधारित उद्योगों के लिए नीतियां बनाकर तथा उन पर नियंत्रण करके राज्य के औद्योगिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देता है।
उत्तराखंड में शराब व्यवसाय पर बड़े ठेकेदारों के एकाधिकार को समाप्त करने तथा नए उद्यमियों को शराब व्यवसाय में आने के समान अवसर प्रदान करने तथा उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर शराब उपलब्ध कराने के उददेश्य से उत्तराखण्ड सरकार द्वारा वर्ष २००१ -२००२ में नईं आबकारी नीति लागू की गयी। इस नईं नीति द्वारा पूर्व में चली आ रही ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर दिया गया। और इसी नीति में गुणत्मक सुधार के साथ ही वर्ष २०२४-२०२५ की आबकारी नीति दिनॉक ०१-०४-२०२४ से प्रभावी हो चुकी है जिसमें उत्तराखण्ड राज्य के निवासियों को अधिक लाभ दिये जाने का प्रयास किया गया है।
आबकारी विभाग निम्नलिखित प्रमुख गतिविधियों के लिए जिम्मेदार है:
मादक पदार्थों के अनियोजित उपयोग पर प्रतिषेध।
विभाग यह सुनिश्चित करता है कि उचित पर्यवेक्षण के माध्यम से मादक पदार्थों की कानूनी बिक्री से अधिकतम राजस्व प्राप्त किया जाए।
राज्य के औद्योगिक विकास में योगदान।